बॉलीवुड के भूले बिसरे संगीतकार और उनके गाने
बॉलीवुड की हिंदी फिल्मों और गानों का अटूट रिश्ता रहा है और गानों को रूप देने में संगीतकार या म्यूजिक डायरेक्टर का सर्वाधिक योगदान होता है . कुछ बहुत पुराने गाने भी संगीतकारों के चलते सदाबहार हो गए जो आज भी आजकल के गानों की तुलना में कई गुना ज्यादा लोकप्रिय हैं . जहाँ एक तरफ शंकर - जयकिशन , सचिन देव बर्मन , लक्ष्मीकान्त - प्यारेलाल , नौशाद , मदन मोहन , कल्याणजी -आनंदजी , ओम प्रकाश नैयर आदि दर्जनों संगीतकार और उनके सैकड़ों गाने उनके द्वारा बनाये धुनों के चलते अमर हो गए हैं वहीँ दूसरी ओर कुछ पुराने संगीतकार ऐसे भी हैं जो कुछ हिट गाने देने के बाद गुमनामी की दुनिया में खो गए हैं , आजकल की पीढ़ी ने न तो उनके गाने सुने होंगे न उनके संगीतकारों के नाम . यह आलेख ऐसे ही कुछ संगीतकारों , जिन्हें संगीत निर्देशक या म्यूजिक डायरेक्टर कहा जाता है , की याद में है .
1 . सरस्वती देवी
बॉलीवुड का सर्वप्रथम संगीत निर्देशक - इस कड़ी की शुरुआत करते हैं हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के चंद प्रथम विख्यात संगीत निर्देशकों से और ख़ास कर सर्वप्रथम महिला संगीतकार सरस्वती देवी से . हालांकि बॉलीवुड की प्रथम बोलती फिल्म आलम आरा ( 1931 ) के संगीत निर्देशक ईरानी और फ़िरोज़शाह मिस्त्री थे फिर भी 1930 से 40 के दशक में सरस्वती देवी ने संगीत निर्देशन में अपना परचम जिस तरह लहराया वह काबिल ए तारीफ है . यद्यपि इस कला में शुरू से पुरुषों का प्रभुत्व रहा है तथापि सरस्वती देवी ने अपने समय के सुपरहिट फिल्मों में हिट गाने दिए . उनका जन्म एक कंजर्वेटिव पारसी परिवार में हुआ था और नाम खुर्शीद मानेकशॉ होमजी था . बॉलीवुड ने उन्हें सरस्वती देवी का नाम दिया . तत्कालीन मशहूर बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले बने फिल्मों में ज्यादातर उनका ही संगीत हुआ करता था और सरस्वती देवी के संगीत निर्देशन में बने गाने अत्यंत लोकप्रिय हुए और उनमें कुछ आजतक भी अमर हैं . 1935 में बनी देविका रानी की फिल्म “ जवानी की हवा “ में पहली बार उनका संगीत लोगों तक पहुंचा और पसंद किया गया . 1949 की फिल्म “उषा हरण “ में उनके निर्देशन में लता जी का गाया गीत “ लहरों पे कभी नाचूँ “ बहुत पसंद किया गया . 1936 की फिल्म “जन्म भूमि “ का गीत ‘जय जय जननी जन्मभूमि .. ‘ देशप्रेम से भरपूर गाना कभी बी बी सी के इंडियन न्यूज़ सर्विस का सिग्नेचर ट्यून भी था .
सरस्वती देवी के निर्देशन में अशोक कुमार ने 1936 की फिल्म “जीवन नैया “ में ‘ कोई हमदम न रहा … ‘ गाना गाया था . बाद में किशोर कुमार ने 1961 की फिल्म “झुमरू “ में स्वयं अपने निर्देशन में इसी गाने को गाया . 1968 की फिल्म ‘पड़ोसन ‘ का एक और सदाबहार गाना “ एक चतुर नार कर के सिंगार .. “ पहली बार 1941 की फिल्म ‘झूला ‘ में सरस्वती देवी ने कम्पोज किया और अशोक कुमार ने गाया था .
पर कहा गया है न कि किस्मत कब पलट जाए कहा नहीं जा सकता है . बाद में बॉम्बे टॉकीज प्रबंधन में हुए परिवर्तन के चलते सरस्वती देवी ही जगह अन्य संगीतकारों का उदय हुआ . इसके अलावा उनके गाने में शास्त्रीय संगीत की झलक ज्यादा होती थी और धीरे धीरे लोग इसे कम पसंद करने लगे . कुछ दिनों तक वे कभी फ्री लॉन्स म्यूजिक डायरेक्शन देतीं तो कभी सोहराब मोदी के फिल्म में भी . बाद में उनकी हालत इतनी दयनीय हो गयी थी कि एक दिन बस से उतरने समय वे गिर गयीं . उनकी हड्डी टूट गयी पर इलाज के लिए पैसे न थे , कुछ दोस्तों और पड़ोसियों की मदद से उनका इलाज हुआ . उस समय के चोटी के कलाकार उनकी सहायता करने तक न आये .
2 - रामलाल
भले आज ज्यादातर लोग रामलाल को भूल गए हों पर उनके कुछ बेहतरीन गीत जाने अनजाने लोग आज भी गुनगुनाते हैं . जी हाँ , ये वही राम लाल हैं जिन्होंने ‘ पंख होती तो उड़ आती मैं …. ‘ जैसे सदाबहार और अविस्मरणीय गीत की धुन बनायीं थी . यह गाना मशहूर निर्माता निर्देशक वी शांताराम की 1963 की फिल्म “सेहरा “ का है .
कहने को रामलाल ने मुख्यतः दो फिल्मों में संगीत दिया था - 1963 में सेहरा और 1964 की फिल्म गीत गाया पत्थरों ने . ये दोनों ही फ़िल्में वी शांताराम की थीं . पर हिंदी फिल्म जगत में रामलाल खुद को बहुत पहले ही स्थापित कर चुके थे भले संगीत निर्देशन के क्षेत्र में न रहे हों . स्वतंत्र रूप से म्यूजिक डायरेक्शन के क्षेत्र में वे बाद में आये पर बांसुरी और शहनाई वादक के रूप में . 1940 - 50 के दौरान बॉलीवुड में उनका वर्चस्व रहा था . 1959 की यादगार फिल्म “गूँज उठी शहनाई “ में उनके शहनाई वादन की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम ही होगी . शोमैन राज कपूर की पहली RK फिल्म 1948 “आग “ थी . इस फिल्म में रामलाल ने बांसुरी और शहनाई बजाई थी . हालांकि इस फिल्म के संगीत निर्देशक राम गांगुली थे पर “ काहे कोयल शोर मचाये … “गाने में रामलाल की बांसुरी कमाल की थी .
राज कपूर और वैजयंती माला ने पहली बार 1950 में एक साथ अभिनय किया था , फिल्म थी ‘तांगावाला ‘ . इस फिल्म में रामलाल ने स्वतंत्र रूप से संगीत दिया था . दुर्भाग्यवश किन्हीं कारणों से यह फिल्म रिलीज नहीं हुई या पूरी नहीं हुई और वे संगीत निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल नहीं हुए . एक बार फिर उन्हें शहनाई और बांसुरी वादन से ही समझौता करना पड़ा था .
रामलाल ने अपने संगीत में अक्सर नए नए प्रयोग भी किये हैं . ‘ सेहरा ‘ के मशहूर गाने “ पंख होती तो उड़ आती मैं … “ में जल तरंग का उपयोग बड़ी खूबसूरती से किया है . इसी फिल्म का दूसरा गाना ‘तुम तो प्यार हो …. ‘ भी उतना ही लोकप्रिय हुआ . उसी तरह फिल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने ‘ में अपने समय के सुविख्यात पार्श्व गायक सी एच आत्मा ने उनके निर्देशन में एक बेहतरीन गीत गाया था - मंडवे तले गरीब के दो फूल खिल रहे … इसी फिल्म का दूसरा गीत ‘तेरे ख्यालों में हम … ‘ भी बहुत पसंद किया गया था .
बस उपरोक्त गिने चुने सदाबहार गाने देने के बाद रामलाल गुमनामी की दुनिया में खो गए . कहा जाता है अंतिम समय में वे अत्यंत दयनीय स्थिति में थे . रामलाल चौधरी जिन्हें हम रामलाल के नाम से जानते हैं उन्होंने कुछ बेहतरीन गाने दे कर अपने संगीत निर्देशन कौशल को प्रमाणित तो किया पर उन्हें बॉलीवुड ने आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया या नहीं मिला , कारण जो भी रहा हो .
क्रमशः
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